(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) : भारत की संगीत कला "भाग - 4" (Music of India "Part - 4")
मुख्य बिंदु:
अपने Art & Culture की संगीत यात्र में हम आज संगीत से जुड़े कुछ वाद्य यंत्रो के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। ये सुरीले वाद्य यन्त्र संगीत को अलग ही स्तर पर पहुँचा देते हैं, जिसके माध्यम से विभिन्न संगीतों को सुनना और रोचक हो जाता है, आइये इन्ही कुछ सुरीले वाद्य यंत्रो के बारे में विस्तार से जानते हैं।
प्रमुख वाद्य यंत्र
शहनाई
- शहनाई भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्य यंत्रें में से है।
- शहनाई एक खोखली नली होती है, जिसका एक सिरा अधिक चौड़ा तथा दूसरा पतला होता है।
- शहनाई के संकरे सिरे पर विशेष प्रकार की पत्तियों और दलदली घासों से डैने के आकार की बनी एक सेमी- लम्बी दो पत्तियाँ लगी होती हैं।
- उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ विश्व के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक माने जाते हैं।
संतूर
- संतूर का भारतीय नाम शततंत्री वीणा है।
- संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है, जिसके ऊपर दो-दो मेरू की पंद्रह पंक्तियां होती हैं।
- इसे आगे से मुड़ी हुई डंडियों से बजाया जाता है।
- इसे सूफी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था।
सारंगी
- सारंगी मुख्य रूप से गायकी प्रधान वाद्य यंत्र है।
- राग ध्रुपद जो गायन पद्धति का सबसे कठिन राग माना जाता है, सारंगी के साथ इसकी तारतम्यता अतुलनीय है।
- सारंगी अलग-अलग प्रकार की होती है। सभी सारंगियों में लोक सारंगी सबसे श्रेष्ठ है। सारंगी का निर्माण लकड़ी से होता है तथा इसका नीचे का भाग बकरे की खाल से मंढ़ा जाता है। इसके पेंदे के ऊपरी भाग में सींग की बनी घोड़ी होती है। घोड़ी के छेदों में से तार निकालकर किनारे पर लगे चौथे में उन्हें बांध दिया जाता है। इस वाद्य में 29 तार होते हैं तथा मुख्य बाज में चार तार होते हैं।
तबला
- आधुनिक काल में गायन, वादन तथा नृत्य की संगति में तबले का प्रयोग होता है।
- तबला हजारों साल पुरा वाद्ययंत्र है किंतु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा संगीतज्ञ अमीर खुसरो ने पखावज के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया।
- तबला शीशम की लकड़ी से बनाया जाता है। तबले को बजाने के लिये हथेलियों तथा हाथ की उंगलियों का प्रयोग किया जाता है। तबले के द्वारा अनेक प्रकार के बोल निकाले जाते हैं।
सितार
- अमीर खुसरो ने सितार को जन्म दिया।
- सितार ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसने पूरी दुनिया में भारत का नाम लोकप्रिय किया।
- सितार बहुआयामी साज होने के साथ ही एक ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसके जरिये भावनाओं को प्रकट किया जाता है।
- इसके सबसे मशहूर वादकों में पंडित रविशंकर का नाम है।
मृदंग
- यह दक्षिण भारत का एक थाप यंत्र है।
- मृदंग कर्नाटक संगीत में प्राथमिक ताल यंत्र होता है।
- मृदंग में सोरू की जगह ‘स्याही’ का प्रयोग किया जाता है।
रूद्रवीणा
- इसे हिन्दुस्तानी संगीत में बजाया जाता है। इसमें एक लंबी नली के आकार की लकड़ी के दोनों सिरों के नीचे सूखे हुए सीताफल के खोखले तूंबा होते हैं। इसमें मुख्य चार तार होते हैं, जो खूटियों से कसे जाते हैं। इसके अलावा दो और तार होते हैं और लकड़ी के बने 24 पर्द होते हैं।
इसराज
- इसराज एक तरह से सितार और सारंगी का मेल है। इसका ऊपरी भाग सितार से और नीचे का भाग सारंगी की तरह होता है। इसमें 4 मुख्य, तरब के 15 से 19 पर्दें होते हैं। इसे भी गज से बजाया जाता है। इसका प्रयोग रवीन्द्र संगीत में भी होता है।
रावणहत्था
- इसमें एक छोटा तूंबा होता है, जिसे नारियल की खप्पर से बनाया जाता है। भोपा लोग जब पाबूजी की फड़ नाम की पारंपरिक गाथा गाते हैं तो इसे बजाया जाता है।
सारिंडा
- असम और त्रिपुरा के आदिवासी तीन तारों वाला यह वाद्य बजाते हैं। इसका तूंबा नाशपाती के आकार का होता है।
जलतरंग
- इसका ज्यादा प्रयोग नहीं होता। इसमें चीनी मिट्टी के कई प्याले होते हैं, जिनमें एक सीमा तक पानी भरा होता है। इसमें पानी की मात्र और प्यालों के आकार के अनुसार स्वर उत्पन्न होता है।
मानव व्यक्तित्व का विकास और कला विधाएँ
इन कला विधाओं से सम्बद्धता मनुष्य को एक श्रेष्ठतर इंसान बनाती है क्योंकि ये कला विधाएं मानव आत्मा को उदात्त बनाती हैं और एक आनंददायक वातावरण का निर्माण करती हैं। इन कलाओं का ज्ञान व अभ्यास व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करता है परन्तु यह कलाकार की निष्ठा व समर्पण पर निर्भर करता है। इन कलाओं में संलग्न व्यक्ति आत्म संतुलन, आत्मशांति, आत्मनियंत्रण और दूसरों के लिए स्वयं में प्रेम का भाव, प्राप्त करता है। उनका कला प्रदर्शन उन्हें आत्मविश्वासी, आत्मनियंत्रित और स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लेने वाला बनाता है। उनमें नकारात्मक भावनाएं लुप्त हो जाती है क्योंकि नृत्य, संगीत और नाटक का मूल मर्क हमें दूसरों से प्रेम करने की शिक्षा देता है।